(नागपत्री एक रहस्य-40)
पूर्वक तुम प्रेम का असली मतलब समझते नहीं हो,अगर तुम प्रेम का असली मतलब समझते तो तुम्हें तांत्रिक विद्या कभी भी किसी को पाने के लिए नहीं सीखना पड़ता, प्रेम का दार्शनिक पक्ष प्रेम पनपता है, तो अहंकार टूटता है अहंकार टूटने से सत्य का जन्म होता है, यह स्थिति तो बहुत ऊपर की है।
यदि हम लोग प्रेम में श्रद्धा मिला लें तो प्रेम भक्ति बन जाता है, जो लोक-परलोक दोनों के लिए ही कल्याणकारी है, इसलिए प्रेम करना बुरी बात नहीं है, लेकिन उसे जबरदस्ती प्राप्त करना गलत है।
सच्चा प्रेम वही है जो कभी बढ़ता या घटता नहीं है, मान देने वाले के प्रति राग नहीं होता, न ही अपमान करने वाले के प्रति द्वेष होता है, ऐसे प्रेम से दुनिया निर्दोष दिखाई देती है, यह प्रेम मनुष्य के रूप में भगवान का अनुभव करवाता है, किसी का प्रेम पाना तांत्रिक विद्या से सीखकर प्राप्त किया जाता है, क्या यह कहां तक सही है?? तुम्हें क्या लगता है कि किसी का प्रेम पाना इतना आसान होता है।
मैंने सुलेखा को महज वह जब दो वर्ष की थी, और उसके पिताजी ने उसे खिलौने की दुकान पर छोड़ कर वहां से चले गए थे, सिर्फ इसलिए कि उनके घर तीसरी भी पुत्री का ही जन्म हुआ था, और उन्हें वह बोझ लगने लगी थी, और यह सब देख और मेरे सामने की यह घटना थीं, क्योंकि मैं उस समय वही मौजूद होकर यह सब देखा रहा था।
लेकिन आज मुझे अफसोस है कि मैं अपनी बच्ची को तुझ जैसे निर्मोही इंसान से बचा नहीं पाया, शायद होनी को कोई नहीं टाल सकता, इसलिए शायद आज मैं सुलेखा को नहीं बचा पाया।
अरे निर्मोही इंसान तुझे याद है ना एक बार तू एक ऐसी ही लड़की को अपने प्यार के जाल में फंसाना चाहता था, जिसका नाम "लक्षणा" था और उसने तेरा क्या हाल किया था, क्या उस बात को भूल गया है?
लक्षणा को कॉलेज से घर जाते हुए देख तुम उस पर मोहित हो गए थे, और तुम उसे अपने काबू में करना चाहते थे, तुम्हें सिखाई हुई विद्या से, लेकिन तब तुम्हें पता नहीं था कि आखिर लक्षणा कौन है?? और उसकी क्या शक्ति है? और तुम उसे अपने मोहपाश में बांधना चाहते थे, और उसे एक मामूली सी लड़की समझ बैठे थे।
लक्षणा को एक मामूली लड़की ही समझना तुम्हारी भूल थी, क्योंकि इस सदी में नाग लोक की विशेष कृपा प्राप्त करने वाली उन महान विभूतियों में से एक है लक्षणा, और हर समय यह समझ लेना कि कोई भी लड़की मोह पाश में इतनी आसानी से बंध जाए यह बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं है। तुम्हारे जैसे कितने ही दुराचारियों ने उज्जवल शक्तियों को उभरने से पहले ही नष्ट कर देने का प्रयास सदियों से किया है।
जब तुमने लक्षणा को अपने मन की बात बताई थी, और लक्षणा ने तुम्हारे प्रेम को ठुकरा दिया था, तब तुम अपनी विद्या शक्तियों से उसे प्राप्त करना चाहते थे, लेकिन उन शक्तियों का दांव तुम पर ही उल्टा पड़ गया था, तब भी तुम्हारी अकल ठिकाने नहीं आई थी, जो तुमने सुलेखा के साथ ऐसा किया, उस समय तो मैंने तुम्हें माफ कर दिया था, काश कि उस समय ही तुम्हें तुम्हारी गलती की सजा तुम्हें दे दी होती तो शायद आज तुम सुलेखा के साथ ऐसा काम नहीं करते।
तुम्हें उस समय लक्षणा ने चेतावनी भी दी थी कि आगे कभी किसी लड़की के साथ ऐसा मत करना, नहीं तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा, लेकिन तुम्हें क्या लगता है कि सारी लड़कियां कठपुतली होती तुम्हारे इशारे पर चलेगी,जो काम तुम लक्षणा के साथ नहीं कर सके, वही काम तुमने अब सुलेखा के साथ किया और वह देखो आज वह एक पशु को बचाने के लिए उसने अपनी ही प्राणों की बलि दे दी।
अरे निर्मोही अब भी तेरे कुछ समझ में नहीं आया, उस मासूम बच्ची ने आखिर तेरा क्या बिगाड़ा था, एक पशु की जान बचाने के लिए जब वो अपनी जान दे सकती है तो वह कुछ भी कर सकती।
गुरु जी कहते हैं कि किसी स्त्री के श्राप से बच पाना तो नामुमकिन है, तब पूर्वक गुरुजी से माफी मांगते हुए कहता कि गुरु जी मुझे माफ कर दो, मुझसे गलती हो गई, अब मैं कभी ऐसा काम नहीं करूंगा।
तब गुरु जी कहते हैं कि मैं कौन होता हूं तुझे बचाने वाला, तू खुद अब सुलेखा के दिए हुए श्राप से नहीं बच पाएगा।
तू देख रहा है ना वहां पर जो हवन कुण्ड हैं, गुरुजी वही हवन कुंड में अग्नि जलाते हैं , और बैठकर मंत्रोचार का आह्वान करना शुरू करते हैं, जैसे-जैसे वे मंत्र का उपचार करते हैं, धीरे-धीरे पूर्वक की शक्तियां उस अग्निकुंड में भस्म होते जाती है, और वह कमजोर पड़ते जाता है और उसके शरीर में एक अग्नि की ज्वाला जैसी तड़प उसे महसूस होने लगती हैं, और वह निढाल होकर वहीं गिर जाता है और गुरु जी से माफी मांगने लगता कि गुरु जी मुझे माफ कर दो। गुरु जी कहते हैं कि माफी के लायक तो तू है ही नहीं, तूझे अपना शिष्य बनाकर मुझे आज अपने आप पर शर्म आ रही है, क्यों मैंने तुझे शिष्य बनाया।
उस दिन जब चाय बनाने के लिए भट्टी नहीं जलने पर तुझे तेरा मालिक पीट रहा था, उसी दिन मैं तुझे यहां अपने आश्रम में दया करके लाया, और आज तूने ही मेरी एक बच्ची को मौत के घाट उतार दिया, तो ऐसे इंसान को इस दुनिया में रहने का हक नही हैं,अगर तू जिंदा रहा तो पता नहीं तू आगे और कितनी लड़कियों की जिंदगी बर्बाद कर सकता है, इसलिए तुझे भी सुलेखा की तरह ही तड़प तड़प कर इस अग्नि कुण्ड में अपनी शक्ति को त्यागकर तुझे भी अपने प्राण को त्यागना होंगा।
अरे निर्मोही इंसान मेरी दी हुई शक्तियों का गलत प्रयोग किया तुने, अगर सुलेखा ने तेरा प्रेम ठुकरा दिया था, बस इसी बात का गुस्सा लेने के लिए तू तांत्रिक विद्या सीख रहा था। मेरी गलती का प्रायश्चित कुछ नहीं है, कहते हुए गुरुजी मंत्र उपचार करने लगे, और पूर्वक वही जोर-जोर से तड़पने लगा और उसने अपने प्राण त्याग दिए।
गुरुजी और आश्रम के अन्य लोग ने सुलेखा के शव को लाकर उसका अंतिम संस्कार किया, और गुरु जी ने सुलेखा से मन ही मन में माफी मांगी कि मुझे माफ कर देना मेरी बच्ची, मैं तुम्हें बचा नहीं पाया इस निर्मोही इंसान से।
आज तुमने हमारे ही आश्रम की एक गाय को अपनी खुद की बलि देकर बचाया है, मेरी बच्ची इससे बड़ा उदाहरण आज इस समाज में और क्या हो सकता है, अगर सबकी सोच तुम्हारे जैसे ही होने लग जाए तो कोई भी प्राणी की बलि देने की हिम्मत किसी में नहीं होगी, कहते हुए गुरुजी की आंखों से आंसू बहने लगे।
क्रमशः.....